आजादी केरऽ रोटी श्रेष्ठ होय छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
वन में एक भेडि़या बहुत दिनऽ से खाना करेऽ बड़ी दिक्कत महसूस करी रहलऽ छेलऽ अपनऽ साथी से कहलकऽ कि हम्में वन छोड़ी के शहर जाय रहलऽ छी । साथी सनी मना करलकै, भेडि़या साथी केरऽ कहलऽ नांय मानलकऽ शहर पहुंची गेलऽ । भेडि़या देखलकऽ एकरा मोटरऽ- झोटऽ कुकुर अपनऽ मालिक केरऽ घर केरऽ बाहर घुमी रहलऽ छै । भेडि़या कुकुर से बातचीत करलकऽ की हाल चाल छों, तोरऽ मालिक केरऽ कुकुर बतैलकै हमरऽ मालिक बहुत बढि़या खाना दै छथ । देखऽ हम्में कुकुर होय के भी पहलवान छी, तोहें भेडि़या होय के भी कमजोर छऽ । तोन्हें चाहऽ ते तोरा खातिर भी बढि़या खाना केरऽ व्यवस्था करी सकै छी । रात के मालिक घरऽ में पहला दै ले पड़थों ? भेडि़या कुकुर केरऽ साथें जाय लागलऽ अचानक भेडि़या केरऽ नजर कुकुर केरऽ गला पर पड़लै, कहलकै तोरऽ गला में पट्टा बांधलऽ छों ? हमरऽ मालिक रोज दिन में गला में पट्टा बांधी दै छथ, आरऽ कुकुर सनी के सामने ई हमरऽ चिन्ह छिकै, हम्में मालिक केरऽ कुकुर छिकिये। रात के पट्टा खोली दे छथ। आगु-आगु कुकुर जाय रहल छेलऽ पिछु पिछु भेडि़या जाय रहलऽ छेलऽ । कुमरा पीछु धुरी के देखलकऽ ते अचरजऽ में पड़ी गेलऽ। भेडि़या वन के तरफ जाय रहलऽ छै । बढि़या खाना केरऽ फेरा में शहर आलऽ छेलऽ । भेडि़या वन जाते7 जाते कहलकै, बन्धन में बंधी के अच्छा खाना से अच्छा छै आजाद रही के एक टुकड़ा खाय के रही जाना । दर असल सेवा भाव आरो दास भाव में थोड़ फरक होय छै । सेवक केरऽ सम्मान आरऽ दा केरऽ सम्मान में भी फरक होय छै । सेवा में ई बात केरऽ स्वतंत्रता छै कि सेवक अपनऽ सवामी के अपनऽ मोन से काम करै छै । दा ते पूरा स्वामीय केरऽ मोनऽ पर निर्भर रहे छै । दास भाव केरऽ सबे बोड़ऽ बिपत्ति ऐहे छै कि ओकरऽ स्वतंत्रता पुरी तरह से खतम होय जाय छै । सेवक केरऽ स्वतंत्रता फिर भी बनलऽ रहै छै । आरऽ स्वतंत्रता बहुमूल्य होय छै । जे आजाद नांय छै, समझऽ कि घोर पीड़ा उठाय रहलऽ छै ।
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