भोजन केरऽ आनन्द तभीये छै, जबे स्वाद लैके खैलऽ जाय | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
कथा सिद्धार्थ केरऽ छिकै, जबे हुन्का बुद्धत्व प्राप्त नांय होलऽ छेल्देन । निरंजना नदी केरऽ किनारां वनऽ में पीपर केरऽ गाछी तर ध्यान करै छेला । सिद्धार्थ केरऽ नियम छेल्हें, ध्यान से मुक्त होय के, आस- पास केरऽ गाँव, बस्ती में जाय छेला आरो भीख मांगै छेला, कुछ दिनऽ के बाद भीख मांगना छोड़ी देलका । गाँव केरऽ प्रधान केरऽ बेटी हुन्का वास्ते खाना लै के पीपर गाछी तर जहाँ हुन्ही साधना करै छेला, रोज आवै लायली । लड़की केरऽ नाम छलै सुजाता ? वू रोज सिद्धार्थ के लेलऽ भात लै के रआबै छेली । वेहे गाँव केरऽ एकरा चरवाहा छेले जकरऽ नाम छेले स्वाति । सिद्धार्थ से प्रभावित होय के रोज हुन्का पास आबै लागलऽ । एक दिन स्वाति सिद्धार्थ के पास बैठलऽ छेलऽ तभीये सुजाता भात लै के ऐली । एकरा से पहले सिद्धार्थ स्वाति से बात करी रहलऽ छेला । जैस ही हुन्ही भोजन शुरू करलका, बात करना बंद करी देलका । जब तक सिद्धार्थ खाना खाते रहला, एक दम वातावरण सुनसान होय गेले । सुजाता आरो स्वाति एक दोसर के दिखते रही गेला । स्वाति के कुछ समझ नांय ऐले सिद्धार्थ एका एक चुप कथीले होय गेला । सिद्धार्थ के भोजन करला के बाद स्वाति पुछै हे गुरू महाराज हमरा से बात करै छेलह । भोजन करते समय एकदम चुप होय गेल्हऽ एकरऽ रहस्य हम्में नांय समझे पार लिये । सिद्धार्थ कहलका भोजन बड़ी कठीन से तैयार होय छै, किसान पहिले धान बुनै छै, खेत केरऽ रखवाली करै छै । चार- पाँच महीना लागी जाय छै अनाज तैयार होय में । ओकरऽ बाद घऽर वाला बड़ी जतन से भोजन केरऽ योग्य बनाबै छै । ऐते कठीन से भोजन तैयार केरऽ स्वाद तभीये होय छै । भोजन केरऽ समय एकदम शांत भाव से भोजन करना चाहीवऽ । भोजन जीवन केरऽ महत्वपूर्ण छिकै । स्वाति आरो सुजाता के सिद्धार्थ केरऽ भोजन के समय चुपचाप मौन रहै केरऽ रहस्य समझमें ऐले ।
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