कम में काम चली जाय, ते बेसी जमा करे केरऽ जरूरत नांय छै | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
भगवान बुद्ध एक बेर, बौद्ध भिक्षुअऽ के साथ लैके कहीं दूर जाय रहल छेला । हुन्कऽ यात्र राजगृह से शुरू होय के, बैशाली केरऽ रास्ता पर छेल्हें । बुद्ध आगु- आगु चली रहलऽ छेलात, आरो हुन्कऽ पीछु भिक्षुअऽ केरऽ दल । बुद्ध जबे पिछु धुरी के देखलका, अचरजऽ में पड़ी गेला । राजगृह से चलै समय राजा के तरफ से भिक्षुअऽ के बहुत चीज उपहारऽ मिललऽ छेलै । बुद्ध देखलका सब भिक्षुअऽ केरऽ माथा पर बोड़ बोड़ मोटरी छै । कुछ एन्हऽ भी छेलं जेकरा पास एक से भी ज्याद मोटरी छेले, कुछ माथा पर लादलऽ छेलऽ कुछ गंड़ा पर लादलऽ छेलऽ । बोझऽ के मारे लथपथ होय कै चली रहलऽ छेलऽ । भिक्षुअऽ केरऽ जोगाय वाला काम बुद्ध के भारी चिन्ता में डाली देल्हें । सांझ भेलऽ जाय रहलऽ छेले । बुद्ध तय करलका, ऐहे वनऽ में रात वितालऽ जाय । जाड़ा केरऽ रात छेले । सभे अपनऽ अपनऽ कपड़ा बिछाय के सुती रहलऽ । बुद्ध भी एकरा कपड़ा बिछाय के सुती रहला । शीत केरऽ प्रभाव से बचै के लेलऽ ओढ़ना ओढ़ी लेलका, आधी रात केरऽ बाद शीत खुबे पड़ै लागलऽ । बुद्ध एकरा कपड़ा शरो ओढ़ी लेलका । लेकिन बुद्ध के भिक्षुअऽ केरऽ जोगाय वाला कामऽ से चिन्ता में रात भर नींद नांय ऐल्हें, करवट बदलते रही गेला । बिहान भेलऽ हुन्हीं भिक्षुअऽ के ठंढ से बचै केरऽ उपाय बताबे लागला । हम्में रात में अंदाज लगैलीय कि एक आदमी के तीन कपड़ा केरऽ जरूरत छै । एकरा से ज्यादा समान जोगाबे से कोय मतलब नांय छौऽ । ओतने समान लै के चल जेतना केरऽ जरूरत होय । ज्यादा समान जमा करभे चिन्ता लागलऽ रहथों, कोए चोराय नै ले । रात में नीन्द नांय पड़थों । नीन्द नांय पड़ला से कत्ते रोग सामने आबी जाय छै । आदमी बिमार पड़ी जाय छै । लाख दवाय केरऽ दवाय छिकै नीन्द । ऐहे से भगवान बुद्ध केरऽ जान लेना जरूरी छै । कम से कम चली जाय ते ज्यादा जमा करे केरऽ की जरूरत ।
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