नैतिकता आरऽ मूल्य केरऽ पक्ष धर | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक आदमी के दु ठो बेटी छेले । लड़की बेटी केरऽ बीहा एकथ किसान संग भेले, छोटकी बेटी केरऽ बीहा एकरा कुम्हारऽ संग भेले । दोनों अपनऽ -अपनऽ ससुरार चलऽ गेली । कुछ दिनऽ के बाद बाप सोचलकऽ चलों, बेटी के देखी आबे छी किरंऽ जीप खाय छै । बड़की बेटी केरऽ धऽर गेलऽ, खेती किसानी वाला घऽर छेले, बेटी कहलके बाबू बहुत दिनऽ से पानी नांय पड़ी रहलऽ छै । तोहें भगवान से मनाय दे खूब पानी पड़े, भगवान तोरऽ बात माने छय, तोहें खूब पूजा-पाठ करे छऽ । भगवान तोरऽ बात जरूर सुनता । पानी पड़ते तबे ने फसल अच्छा होते । पिता ने कहलके हम्में जरूर एन्हऽ करबे । दोसरऽ दिन छोटकी बेटी केए घऽर गेल छोटकी बेटी कहलके बाबू हमरऽ माटी केरऽ बर्तन बनाबे केरऽ कार बार बढि़याँ चली रहलऽ छै । लेकिन जों वर्षा आबी जेतऽ पानी पड़े लागतऽ हमरऽ काम धंधा रूकी जेतऽ । बाबूजी तोहे भगवान केर भक्त दिखऽ हमर खातिर भगवान से प्रार्थना करीहऽ कि ई साल बर्षा नांय होवे । पिता- सोचऽ में पड़ी गेलां, दोनों बेटी से बराबर प्यार करे छेला । अबे केकरा लेलऽ की मनाता भगवानऽ से ? यहीं से हुन्कऽ दुविधा शुरू होय गेलऽ दोनों बेटी के आश्वासन दै के चलऽ ऐला । आरो अपनऽ गुरू केए पास गेला । अपनऽ समस्या बतैलका, गुरू ने कहलका तोरऽ काम छोंऽ प्रार्थना करना ईमानदारी से करऽ । फल देना भगवान केरऽ कृपा पर होते । भगवान परालब्ध केरऽ अनुसार सबके फल दै छथीन । तोहें प्रार्थना में पक्षपात ने करऽ । तोहें अपनऽ काम करऽ, भगवान के अपना काम करे ले दहऽ । ईश्वर केरऽ लीला में बाधा नांय पहुँचाबऽ । असल में आदमी के जीवन में अनेक बार एन्हऽ अवसर आबे छै । जबे सही निर्णय लैके भी भ्रम में पड़ी जाय छै । तबे तय करना मुश्किल हो जाय छै कि ई समय सही की छिकै ? जहाँ नैतिकता आरो मूल्य हो आदमी के वही तरफ टिकना चाहीव । ईमानदारी से अपनऽ काम करे आरो परिणाम प्रकृति भगवान पर छोड़ी देना चाहीव ।
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