जबे मृत्यु तै छै ते उल्लास से वरणकरऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
मृत्यु रोज दिन नजदीक आयी रहलऽ छै, आरो जिन्दगी रोज दिन घटी रहलऽ छै । ऐहे से मृत्यु केरऽ भय नांय करऽ । ओकरऽ स्वागत केरऽ तैयारी करऽ । सजग होय के अपनऽ जीवन के देखना एक कला छै । ई प्रक्रिया में अपने- आप समाधि लागी जाय छै । एक एन्हऽ समाधि जेकरा में आदमी के स्वयं केरऽ बोध होय जाय छै । आरो संसार केरऽ फालतू बात छुटी जाय छै । संसार केरऽ जे अनर्गल छै, वहे हमरा भाई बनाय दे छै । जबे हम्में दूर खड़ा होय के नजदीक भाव से अपने ही जीवन के देखे छी ते सब कुछ हलका होय जाय छै । सुकरात केरऽ जीवन कथा छै । जबे हुन्कऽ अंतिम समय आबी गेलऽ, हुन्कऽ चेला सब कान्दे लागलऽ । सुकरात ने कहलका कान्दबऽ बन्द करऽ । हमरऽ शरीर शिथिल होय रहलऽ छै, लेकिन हम्में लगातर ई प्रयास करी रहलऽ छी कि हम्में अपनऽ मृत्यु होश- हवाश में देखंऽ । अबे सब कुछ छुटी रहलऽ छै । जेतना छुटतऽ, ओतने हमरऽ बची जातऽ जगत केरऽ बोध खतम होय जातऽ आए अपनऽ बोध जागे लागतऽ । सुकरात ने कहल का आज हमरो मृत्यु नांय होय रहलऽ छै । सिर्फ ई देखी रहलऽ छिपे कि मरना की छिकै ? ई मौका आज मिललऽ छै । ऐही से तोरा सनी कान्दी के हमरऽ समाधि में स्यवधान नांय करऽ । सचमुच में सुकरात बचते गेला, मृत्यु होते चलऽ गेले । हुन्हीं संदेश दे गेला, मृत्यु रोज दिन निकट आय रहलऽ छै । आरेा जीवन रोज दिन घटी रहलऽ छै । ऐहे से मृत्यु केरऽ भय नांय करऽ । ओकरऽ स्वागत केरऽ तैयारी करऽ । सूखलऽ नारियर अपनऽ खोलऽ के भीतर पाकी जाय छै । फोड़ला पर पूरा के पूरा बाहर आबी जाय छै । जे गीला नारियर होय छै, ओकरा फोड़ला पर अपनऽ खोलऽ में सटलऽ रहै । निकाले में टुकरा-टुकरा होय जाय छै । आत्मा आरो शरीर के साथ ऐहे बात छै । अपनऽ शरीर से अलग होय जाना मानऽ पाकलऽ अपनऽ आत्म भाव में पहुँची जाना । आरो शरीर से चिपकलऽ मृत्यु होय केरऽ माने गिला खोल के तरह चिपकी जाना । टुकरा- टुकरा होय के पिलपिले होना । ऐसे लेलऽ शान्ती आरो आनन्द से जीवन में एकरऽ बोध के लाना बड़ा उपयोगी होय छै ।
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