संत लेली भौतिक चीज तुच्छ छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
दु चार ठो लड़का एक संत केरऽ पास दर्शन करे के उद्देश्य से पहुँचलऽ । संत ने पुछल का तोरासनी यहाँ कथिले ऐलऽ छऽ । लड़का सभी बोलले, लम्बा समय से अपने केरऽ दर्शन केरऽ अच्छा छेले । संत बोले हमरा की चाहैछ लड़का बोलले हमरा सनी विनय भाव से अपने केरऽ दर्शन करे ले ऐलऽ छी, सोचे छेलां अपने केरऽ दर्शन मिली जाय ते हमरा सनी धन्य होय जेब । संत मुस्कुराय के बोलला तोरा सनी, हमरा की दै सके छऽ ? जों होहें हमरा कुच्छु दै सके छऽ ते हम्में तोरा बहुत कुछ दै देभों । बोलऽ की दै सके छऽ ? लड़का सनी अचरजऽ में पड़ी गेले, सोचे लागले अपनऽ हस्ती आरो श्रद्धा से जे सकबे दै देबे । संत से कहलके कहलके केतना टाका चाहीव महाराज ? संत फेरू मुस्कुराय के कहलका टाका नांय चाहीब । आज चलऽ जा । कल्ह फेरू ऐहऽ । ई बीचऽ में मनऽ में सोची लिहऽ कि धन आरो टाका कोय वस्तु छोड़ी के हमरा की दै सके छऽ । लड़काते हैरानऽ में पड़ी गेले । सोंसे दिन सोचे-बिचारे में रही गेलऽ । धन वस्तु छोड़ी के ई महात्मा के की देलऽ जाय सके छे । हमरा कुछ समझ में नांय आय रहलऽ छे । दोसरऽ दिन संत करेऽ पास पहुँचलऽ संत बोलला की आनलऽ छऽ हमरा वास्ते ? महाराज हमरा समझ में नांय जाय रहलऽ छै अपने केरऽ बुझौवल । संत बतैल का, हमरा तोरा से बचन चाहीव । बुराई छोड़ै केरऽ आरऽ भलाई अपनाबे केरऽ । तोहें हमरा कुछ दै ले चाहे छेल्हऽ ने ? हमरा वास्ते ऐहे कीमती छै तोरऽ बचन ? ऐहे से कहलऽ गेलऽ छै संत महात्मा के पास जाए ते खाली हािा नांय जाय । कुछ न कुछ देना चाहीव । आरेा दै केरऽ अर्थ भौतिक वस्तु नांय बल्कि जी वन में अच्छा काम करै केरऽ संकल्प । तभी हुन्कऽ दर्शन सार्थक छै । संत महात्मा केरऽ संगत में जे कुछ मिले छै ओकरा प्रेम पूर्वक स्वीकार करना चाहीव ।
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