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Friday, July 12, 2019

बच्चा के सिखाबऽ अपनापन | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

बच्चा के सिखाबऽ अपनापन | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

गरमी केरऽ मौसम, खाली तपन, उमस केरऽ ही समय नांय छिके, एक सोहानऽ अवसर भी छिके । गरमी केरऽ दिनऽ में बच्चा सब केरऽ सकूल (स्कूल) में एक महीना के लेलऽ इसकूल (स्कूल) बन्द होय जाय छै, बच्चा सनी के छुट्टी मिली जाय छै । कहीं- कहीं नया जग्घ पर घुमैल जाय केरऽ प्लान बनाबै छै । प्लानिंग में गौर करऽ कहीं जरूरी कुछ छुट्टी ते नांय रहलऽ छोंऽ । तोहें ई अवसर पर अपनऽ से बच्चा के जोड़बाबै केरऽ गाढ़ऽ प्रयास करऽ । हालांकि एक समय एन्हऽ छेले, बच्चा सनी के छुट्टी केरऽ मतलब होय छेले, नानी- दादी केर कहानी गांव केरऽ हरियाली आरो खेत-खरिहाल बरूवा पर उछला कुदना मस्ती करना छेले । लेकिन धीरे-धीरे ई चलन कम होय गेले । गरमी केरऽ छुट्टी पहले जन्हऽ नांय रही गेले । तोहें चाहऽ ते कहीं घुमी के आबे केरऽ औपचारिकता पूरा करे केरऽ बजाय ई बेर गरमी केरऽ छुट्टी में अपनऽ के सत्य, यादगार आरो मजेदार बनाबै केरऽ कोशिश करी सके छऽ ? एन्हऽ करे से तोरा अलग अनुभव मिलथों । तोरऽ बच्चा केरऽ जीवन में भी बड़ा परिवर्तन होते । जे मजा अपनऽ दादी- नानी पर बिताबे में छुट्टी केरऽ आनन्द तोरा आरो तोरऽ बच्चा के मिलथों_ वू बहुत अनोखा आरो यादगार होथोंऽ । रिश्तेदार केरऽ आना- जाना, मिली- जुली के खाना बनाना, खाना खिलाना, दुनियां- जहान गांव- घर केरऽ बात तोरा खुसनुमा करी देथोंऽ । वहीं बच्चा सब के भी ग्रामीण जीवन के करीब से देखै केरऽ मौका मिलते । नानी- दादी केरऽ पिटारी में से ढेर सारी कहानी (खिस्सा) सुने केरऽ मोका मिले छै । ई सब बातऽ से भी बच्चा सिनी के भी एक अलग जिन्दगी से दुनियां केरऽ सामना करबैते । वहाँ ओकरा नया- नया दोस्त मिलते, संगे- संगे खूब धमा- चौकड़ी मचैते, एन्हऽ शहर केरऽ दिन चर्या में संभव नांय होय सके छै । काहे कि वू टी- वी- विडियो ग्रम्स आरो मोबाइल क साथ ही अपनऽ समय बिताबे छै । जेतना बत गांव में आय के सिखते, जे कुछ नया अनुभव करते, बू सब दूर से नांय सिखी पैयते । महसूस करते अपनापन केरऽ जबे बच्चा संयुक्त परिवार में दादा दादी, चाचा चाची, ताऊ ताई, बुआ (फुआ) केरऽ सान्निधय में रही के बोड़ऽ होय छेले । रिश्तेदार के बीच अपनापन केरऽ नजदीक से महसूस करे छेले । अबे शहरऽ केरऽ व्यस्त जिन्दगी में बच्चा सिर्फ अपनऽ माता पिता आरो भाई बहीन के ही जानी पावै छै । ऐहे वजह से वू अपनऽ नजदीकी रिश्ता से अनजान रहे छै । रिश्ता नाता जानै केरऽ मौका ही नांय मिले छै । बच्चा के कहऽ जे खिस्सा कहानी दादी या नानी सुनाय रहलऽ छौ, ओकरा लिखी के रखी ले, ई तरह से तोरा पास कहानी केरऽ संग्रह बनी जैतो । रीति रिवाज आरेा परंपरा से भ्ज्ञी बच्चा के परिचित करा बड़ा एकरा में निहित अर्थ भी समझाबऽ अपनापन केरऽ ।


टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

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