जीतै के वास्ते वीर समझौता नांय करै छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
महाभारत युद्ध केरऽ बात छिकै । कौरव- पांडव में घमासान युद्ध चली रहलऽ छेलै । कर्ण अर्जुन के मारे के लेलऽ किरिया खाय के बैठलऽ छेलै । कर्ण वाण पर वाण चलाय रहलऽ छेलऽ । एक वाण अर्जुन के तरफ आलै, श्रीकृष्ण ने रथ के नीचे झुकाय देलका वाण अर्जुन केरऽ मुकुट केरऽ उपरला भाग कारते होलऽ पार होय गेलऽ । ई देखी के कर्ण के अचरज भेलै, वाण धुरी के कर्ण केरऽ तरकस में आबी गेले । बोललैं कर्ण तोहें अबकी बार बढि़यां से निशाना लगैहऽ जो हम्में सही निशाना पर गेलियै ते तोरऽ शत्रु के कोय नांय बचाबै ले पारतै । ई बेर पूरा कोशिश करऽ तोहें जरूर विजय प्राप्त करभे। तोरऽ प्रतीज्ञा भी पूरा होय जेथोंऽ कर्ण केरऽ अचरज आरेा बढ़ी गेलै । वाण से पुछलकै अपने हमरा अपनऽ परिचय दे । कि की कारण छै, अर्जुन के मारै में एत्ते सूचि छोड़ वाण में एकरा सौंप छेलै । प्रकट होय के बोललै हे महावीर हमरा कोय साधारण वाण नांय समझऽ, हम्में महर्षि अश्वसेन छिकां । अर्जुन ने एक समय में खांग्व वन के आग में जराय देलऽ छेलै । हमरऽ पूरा परिवार जरी के मरी गेलऽ । हम्में अर्जुन से बदला लेबैलि चाहे छी । अबे हमरऽ बदला पूरा होतऽ, एन्हऽ बुझाय छै । कर्ण ने हाथ जोड़ी के अश्वसेन से कहलकऽ । मित्र हम्में तोरऽ भावना केरऽ आदर करै छी । लेकिन हम्में अपनऽ पुरूषार्थ से नीति पूर्वक युद्ध जीतना चाहै छी । अनीति केरऽ जीत के मुकाबला में नीति केरऽ साथ लड़ते होलऽ मरी जाना अच्छा समझबै । अश्वसेन कर्ण केरऽ प्रशंसा करी के बोलला, हे कर्ण तोहें वास्तव में धर्म केरऽ इज्जत करै छऽ । तोरऽ करनी उज्जवल छोंऽ । कर्ण आरो धर्म केरऽ धुरी ही वेहे गुण छै । जे हुन्का महा पुरूष केरऽ दर्जा दिलाबै छै । इच्छा के पूरा करै के लेलऽ, कृत संकल्प होय के बावजूद धर्म केरऽ साथ समझौता नांय करना सच्ची वीरता केरऽ पहचान छिकै । एन्हऽ वीर ही दुनियाँ के रास्ता देरवावय छै ।
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