क्रोध केरऽ आग के धैर्य से बुझाा चाहीव | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
गुस्सा पर धैर्य केरऽ माने ई नांय छिके कि क्रोध त्यागी देलऽ जाय । एकरऽ माने ईछिके कि जबे उचित लगे तबे हमरा क्रोध आबे जाए हमरे नियंत्रण से चलऽ जाय । अधिकांश मोका पर गुस्सा अपनऽ इच्छा पर आबे छै । आरेा चलऽ जाय छै । जबे कि गुस्सा करे वाला ओकरा सामने असहाय होय जाय छै । जैन मूने एक कथा सुनैलथीन, दु पड़ोसी केए बात । दोनों पड़ोसी में बातऽ बात में लड़ाय होते रहे छेले । दोनों अशान्त रहे छेले । एक दिन एक पड़ोसी कुछ ज्यादे गुस्सा में आय के दोसरऽ पड़ोसी करेऽ छप्परऽ पर जलते मोढ़ी फेंकी के भावी गेलऽ । पड़ोसी केरऽ धऽर जरे लागले । ई पड़ोसी जरते मोढ़ी फेंकते देख्ाी लेलके, हिन्ने धऽर जरी रहलऽ छै, हुन्ने जराबे वाला के पीछु दौड़ी रहलऽ छै दौड़ते दौड़ते बहुत दूर निकली गेलऽ हिन्ने दोनों पड़ोसी केरऽ घऽर जरी के स्वाहा होय गे दोनों लड़ी-झगड़ी के घुरलऽ घर देखी के माथ पकड़ी के बैठी गेलऽ । तबे ओकरा ज्ञान भेले घऽर केरऽ आग शान्त होय सके छेले जों हम्में अपनऽ भीतर केरऽ क्रोधाग्नि शांत करी लेतलां, ते आज ई दशा नांय होतलऽ ओकरऽ पीछु नांय दौड़तलां आरो आग बुझाबै में लागी जातलो आज घऽर नांय जरतलऽ । घरऽ केरऽ जरना ते एक प्रतीक घटना छै । हम्में बहुत मौका पर बाहर घटी रहलऽ घटना से अपनऽ भीतर केरऽ क्रोधाग्नि भड़काबे छिपै । केरू ज्वाला बनी के हमरऽ व्यक्तित्व के, हमरऽ सफलता के झुलसावे छै । क्रोध केरऽ अग्नि के धैर्य आरो त्याग केरऽ पानी शांत करी सके छै । ई क्रोधाग्नि पर जेकरऽ नियंत्रण छै वहे बलवान छै, अपनऽ व्यक्तित्व केरऽ मालिक छै ।
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