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Thursday, July 11, 2019

क्रोध की अग्नि | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

क्रोध की अग्नि | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 



बहुत समय पहले केरऽ बात छिके, शंकराचार्य आरो मंडनमिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार शास्त्रर्थ चलले । शास्त्रर्थ केरऽ निर्णायक छेली मंडनमिश्र केरऽ धरम पत्नी देवी भारती । हार जीत केरऽ निर्णय होना बांकी छेले । वेहे बीच में देवी भारती के आवश्यक काम से कुछ समय के लेलऽ बाहर जाय ले पडि़ गेल्हें । लेकिन जाय से पहले देवी भारती ने दोनों विद्वानऽ केरऽ गला में एक- एकऽ फूल केरऽ माला डालले होलऽ कहलकी, ई दोनों माला हमरऽ अनुपस्थिति में तोरऽ हार जीत केरऽ फैसला करते । ई कही के देवी भारती वहाँ से चलऽ गेली, शास्त्रर्थ केरऽ प्रक्रिया आगे चलते रहले । कुछ देर बाद देवी भारती ऐली, हुन्हीं अपनऽ निर्णायक नजरऽ से शंकराचार्य आरो मंडनमिश्र के देखलकी, बारी- बारी से देखते होलऽ अपनऽ निर्णय सुनैलकी । हुन्कऽ फैसला के अनुसार शंकराचार्य विजयी घोषित करलऽ गेला । आरो हुन्कऽ पति मंडन मिश्र पराजय होला । सभे दर्शक हैरान होय गेले कि बिना कोय आधार केरऽ इ विदूषी अपनऽ पति के ही पराजित घोषित करी देलकी । एक विद्वान ने देवी भारती से नम्रता पूर्वक पुछलके की हे देवी तोहें ते शास्त्रर्थ केरऽ बीचऽ में ही चलऽ गेलऽ छेलहऽ, फेरू वापस लौटते ही अपनऽ एन्हऽ फैसला किरंऽ दै देल्हऽ ? देवी भारती ने मुस्कुराय के जवाब देलकी, जब भी कोय विद्वान शास्त्रर्थ में पराजित होय लागे छै, आरो ओकरा जबे हार केरऽ झलक देखाबै लागे छै ते वू क्रुद्ध हो उठे छै । हमरऽ पति केरऽ गला केरऽ माला हुन्कऽ क्रोध से सुखी चुकल छै, शंकराचार्य जी केरऽ माला केरऽ फूल अभी भी पहले जेन्हऽ ताजा छै ।

टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

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