पितर के प्रति श्रद्धा ही श्राद्ध छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
भादौ शुक्ल पुर्णिमा से लै के आश्विन कृष्णा पक्ष से सोलह (16) दिन सनातन धर्म में पितरऽ केरऽ दिन मानलऽ जाय छै । ई पख में पितर लोक केरऽ द्वारा खुली जाय छै । आरो पितर लोग अपनऽ संतानऽ के देखे केरऽ लालसा में पृथ्वी लोक पर घुमे लागे छथ । दुनियां केरऽ प्राय सभे देशऽ में पूर्वजऽ के अपनऽ- अपनऽ रिवाजऽ के अनुसार पुजलऽ जाय छै । हिन्दू धर्म माय- बाप के आरो मातृ- पितृ पूर्वजऽ के देवता से भी ऊँचऽ स्थान देलऽ गेलऽ छै । संतानऽ केरऽ हृदय में अपनऽ पूर्वजऽ के प्रति स्नेह भरलऽ होय छै । ते एन्हऽ संतान केरऽ प्रार्थना से देवता प्रसन्न होय जाय छथ । सभे संतान माय- बाप केरऽ ट्टणि छै । केवल जीतऽ माय- बाप केरऽ सेवा से नांय, मरलऽ पूर्वजऽ केरऽ उपासना करी के पितृ ट्टण से धीरे- धीरे उ ट्टण होय के लेलऽ ही श्राद्ध करलऽ जाय छै । वैदिक दर्शन मरला केरऽ बाद पूर्व जन्म केरऽ साथ विकसित होलऽ छै । आरेा वू कोय योनि के भी प्राप्त करी सके छै । पितर पख केरऽ सोलह दिनऽ में केवल पूर्वज आरो निराश्रित, मित्र, ब्रह्मा से लेके सभे जीवऽ के जलदान करे केरऽ विधान छै । जेकरा कर्मकाण्ड केरऽ भाषा में तर्पण कहलऽ जाय छै । धर्मशास्त्र में कोय भी उपवास केरऽ नियम तीन लोगऽ पर लागू नांय होय छै । बच्चा पर, बिमार लोगऽ पर आरो एकदम बुढ़ऽ पर । जेकरऽ बाप जीतऽ छै, ओकरा पितृ केरऽ काम करना मना छै । श्राद्ध में श्रद्धा केरऽ महत्व छै । श्रद्धा से करलऽ गेलऽ श्राद्ध पितर लोक के प्राप्त होय छै । नाम, गोत्र, मंत्र के द्वारा पितरऽ के निमित ढेलऽ जाय वाला चीज पितरऽ के ठीक वेहे रंऽ खोजी लै छै, जेरंऽ बछड़ा अपनऽ भाय के खोजी लै छै । श्राद्ध में चीजऽ केरऽ प्रधान नांय छै । श्रद्धा ही प्रधान छै । ऐ हे से कहलऽ गेलऽ छै कि जेकरा पा कुच्छु भी चीज नांय छै, वू अपनऽ दोनों हाथ आकाश के तरफ उठाय के ऊँचऽ आवाज में कह ना चाहिवऽ कि सही प्रयत्न के बावजूद हम्में अपनऽ पितर केरऽ श्राद्ध के वास्ते सामान नांय जुटाबे पारलां, पितर लोग हमरा पर प्रसन्न रहिहऽ । श्राद्ध तीन पीढ़ी के एक सूत्र में बांधलऽ राखे केरऽ काम शताब्दी से चलऽ आय रहलऽ छै । माय पक्ष आरो बाप पक्ष केरऽ तीन पीढ़ी के स्मरण करी के पानी देलऽ जाय छै । एकरा से पानी दै वाला के पचाच सौ साल पहले केरऽ अपनऽ पूर्वज परिवार केरऽ जानकारी रहे छै ।
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