परमात्मा के समर्पित कला ही सर्वश्रेष्ठ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक बार तानसेन से महात्मा हरिदास केरऽ गायन केरऽ प्रशंसा सुनी के बादशाह अकबर ने हुन्कऽ गाना सुनै केरऽ निश्चय करलका । हरिदास त्यागी संत छेना । दिल्ली दरबार में जाय के हुन्कऽ द्वारा गाबै केरऽ प्रश्न ही नांय छेले, ई भी मुश्किल छेले कि इन्हीं बादशाह केरऽ सामने गाये केरऽ हिम्मत करता ऐहे से अकबर आरो तानसेन ने बृन्दावन जाय के संगीताचार्य हरिदास केरऽ गाना सुने केरऽ सोचलका । जबे हुन्हीं बृन्दावन पहुंचला ते अकबर के ई जानी के बड़ी आश्चर्य भेले कि हरिदास एक छोटऽ सन कुटिया बनाय के रहे हथ । अकबर कुटिया केरऽ बाहर नुकाय रहला । तानसेन हरिदास केरऽ कुटिया में ढुकला । हरिदास तानसेन केरऽ गुरू छेा । तानसेन वहाँ गाना शुरू करलक हुन्हीं जानी बुझी के गलती करे लागला । शिष्य केरऽ भूल सुधारै के लेलऽ हरिदास कई ढंग से गाय के दिखाबे लागला । बादशाह केरऽ इच्छा पूरा होय गेल्हें । दिल्ली पहुंचला पर बादशाह ने तानसेन से वेहे रंऽ गाना गाय के सुनाबे ले कहलका, तानसेन कहलके, गुरूजी केरऽ स्वर में जे सुन्दरता छेले ओकरा हम्में नांय प्रकटकरी सके छिये । तानसेन अपने श्रेष्ठ गायक छेला, हुन्कऽ मुंहऽ से ई शब्द सुनी के आश्चर्य होल्हें । अकबर कारण पुछलका । तानसेन कहलके हम्में गुरूदेव केरऽ तरह ऐले से नांय गाबे सके छिये कि हम्में दिल्ली केरऽ बादशाह के लेलऽ गाबे छिये । आरो हमरऽ गुरूदेव ई जगत केरऽ मालिक के लेलऽ गावे छथ । कला में श्रेष्ठ उँचाई के पाबे के लेलऽ ई जरूरी छै कि कला केरऽ प्रदर्शन केकरऽ भी सांसारिक लक्ष्य के लेलऽ नांय होय के परमात्मा के लेलऽ होय । एकरऽ कारण ई छै कि हमरऽ उद्देश्य ही कला क्षेत्र में प्राप्ति केरऽ सीमा तै करे छै । जों ई धन-दौलत नाम आरो यश केरऽ लक्ष्य बनाय के चले छी, ते हम्में सृजन केरऽ सर्वोच्च संभावना के पाबे केरऽ जग्घ ओकरा से मिले वाला अन्य वस्तु में ही भटकी जाय छै । अनन्त परमेश्वर के लेलऽ समर्पित कला ही अपनऽ पूर्णत केरऽ प्राप्ति करी सके छै ।
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