हमेशा प्रसन्न रहे ले योग करऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
परमात्मा जबे जन्म दै छथिन, ते ओकरा साथ प्रसन्न रहे केरऽ सब संभावना के छोड़े छथिन । मनुष्य शरीर केरऽ गठन बाहर आरो भीतर से जेन्हऽ करलऽ छै कि ओकरा खुश रहना चाहीव । फेरू हम्में उदास काहे रहे दिये ? असल में उदासी हमरऽ भीतर से आबै छै । आरो खुशी मौलिक रूपऽ में मौजूद छै । चूंकि हम्में सावधान नांय रहे छिये । ऐसे से बाहर से ऐलऽ उदासी हाबी होय जाय छै । बहुत गहराई में नांय जाय ते हमरा पास पाँच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां आरेा पंचतत्व होय छै । ई पन्द्रह चीज हमरा खुशी दे के लेलऽ ही छै । ई सब के साथ एक सोलहवीं चीज छै मन । वैसे शास्त्र में एकरा से आगे तक केरऽ वर्णन छै । लेकिन हमरा सामान्य लोगऽ के ई सोलहवीं स्थिति पर काम करी लेना चाहीव। मन छिके उदासी केरऽ केन्द्र, रोग के इलाज केरऽ पहिले डॉक्टर पैथालॉजी केरऽ टेस्ट कराबे छै । जेकरा से पता चले छै कि बिमारी केरऽ जड़ कहाँ छै ? मन उदासी, दुख, परेशानी, निराशा, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, हताशा, थकान आरो चिन्ता केरऽ घऽर छै । जे पन्द्रहो साधनऽ के मटिया मेट करी दै छै, नियंत्रण केवल योग से होय सके छै । मानवता अगर ऐत्ते उदास होय जाते ते प्रकृति ओकरऽ साथ कैसे देतै ? ऐ हे से योग करना एक पात्र के हाथ में लेबे जेन्हऽ छै । पात्र केरऽ ढक्कन खुललऽ छै । प्रसन्नता बरसी रहलऽ छै । तोहें भरी ले । जों ढक्कन बंद छै, या पात्र उलटा छै, ते प्रसन्नता बरसते परंतु खुशियाँ जमा नांय करे ले पारमऽ पात्र के खुला राखऽ आरो दोनों हाथऽ से खुशियाँ समेटी ले । एकरा लेलऽ चौबीस घंटा में कुछ समय योग जरूर करऽ । जों हनुमान चालीसा से सम्पर्क करी लेलऽ जाय ते फेरू प्रसन्न रहना आरो आसान होय जाने काहे कि हनुमान जी से बोड़ऽ कोय योगी नांय छै ।
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