खुश रहना सिखऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
खुश रहना खुश रखना आरो खुशी बांटना, अलग अलग बात छै । चलऽ देखे छिये ई तीनों काम कि रंग करलऽ जाय, सबसे पहिले ते खुश रहना शुरू करऽ । एकरा आसान नांय समझऽ । हम्में अपनऽ खुशी केरऽ रिमोट दोसरा केरऽ हाथऽ में दे देल छिये । ज्यादातर हमरऽ खुशी दोसरा लोगऽ से संचालित होय छै । कोय हमरा से कहे छै, होतें बहुत अच्छा छऽ आरो हम्में दिन भरके लेलऽ प्रसन्न होय जाय छिये । थोड़ सन विपरीत बात होय गेलऽ कि हमरऽ दिमाग खराब होय जाय छै । लोग तै ही नांय करे ले पावे छै कि छिकां ? ई भी दोसरे से तै कराबे छै । जो अपने के जाने केरऽ इच्छा जाग्रत करी ले ते तोहें खुश रहना सिखी जाभे । जबे खुश रहे ले सिखी जाभे ते पहिला काम ऐहे करीहऽ कि दोसरा के खुश रखिहऽ । खुश रहना आसान छै, लेकिन खुश रखना कठीन छै । अपनऽ लोगऽ से जान पहचान होय जाय ते तोहें ओकरा खुश रक्खी सके छऽ । खुश रहना आरेा खुश रखना, एकरा में पहिले अपने के जानना आरो दोसरा में अपनऽ जान पहचान केरऽ लोग आते । लेकिन एक तीसरा काम भी छै खुशी बांटना । ई अनजान लोगऽ के बीच कई ले पड़े छै । खुशी बांटे के लेलऽ कोय बहुत संसाधन नांय अपनाना छै । एकरा लेलऽ बस बोड़ऽ दिल चाहीवऽ खुश रहना, खुश रखना आरो खुशी बांटना ई तीन केरऽ ताल मेल बनी जाय ते मानी के चलऽ तोहें अपनऽ जीवन केरऽ समापन तक खुशी केरऽ ऐते बोड़ऽ बैंक बनाय चुकलऽ होभऽ कि जबे विदा होय जाभऽ ते लोग मानी के चलते कि ई एतना कुछ दै गेले कि एकरऽ गेला केरऽ बाद अबे पता चलले कि खुशी केरऽ सही मतलब की छिके ।
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