वेद माता ज्ञान केरऽ जननी छथीन । गायत्री महामंत्र में समाहित चौबीस अक्षर केरऽ परम संवाहक छथीन । ज्ञान केरऽ आधार गायत्री महामंत्र छिकै ।
ओम भूभुर्वः स्वः तत्स वितुर्व रेण्यं भगो ।
देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात ।
ओम दिव्य आवाज केरऽ परम संगीत शब्द सृष्टि आरऽ बीज छिकै । ओमकार सभे मंत्र केरऽ प्राण स्वरूप छिकै । देहऽ के ब्रह्मा मानलऽ गेलऽ छै । जिहवा के सरस्वती आरो हृदय में उठे वाली तरंग देह आरो जिहवा से मिली के स्वर में प्रकट होय हथीन । गायत्री ऐहे महामंत्र केरऽ भाषार्थ छिकै । दुःख नाशक सुख दायिनी तेजस्वी देवस्वरूप गायत्री माता के शत्-शत् नमन करे छिहेन । जे हमरऽ बुद्धि केरऽ सन्मार्ग प्रेरित करथ । आज केरऽ दौर में ज्ञान पुंजी छिकै । जेकरऽ ताकत से सब प्रकार केरऽ उपलब्धि हो जाय छै । भारत अपनऽ प्राचीन युग केरऽ परंपरा के अन्तर्गत ज्ञान केरऽ पक्षधर छिकै । दार्शनिक चिन्तन आरो वैज्ञानिक सोच केरऽ माटी से पले- बढ़े छिये । ई भारत तहिया से छै, जहिया से विश्व केरऽ सामान्य आचरण आरो सभ्यता केरऽ ज्ञान नांय छेले । हमरऽ पूर्वजऽ ने ज्ञान केरऽ साथ-साथ प्रसारित करै केरऽ तौर तरीका बतैलथीन । तीर्थाटन वन गमन, सत्संग ई सब केरऽ ऐके उद्देश्य छेले, सब जगह ज्ञान बढ़ै । सुख- शान्ति मिले । ज्ञान केरऽ जननी वेद माता गायत्री केरऽ महिमा केरऽ प्रभाव छिके । स्पष्ट छै ज्ञान केरऽ मुख्य आधार गायत्री महामंत्र केरऽ परम शिक्षाछिकै । गायत्री ज्ञान जननी मानवीय अवतार भेलऽ छथीन । ऐहे ज्ञान समाज केरऽ मुख्य आधार छिकै ।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.