धार्मिक होय के साथ, धर्म के जानना जरूरी छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक राजा बड़ी धार्मिक छेला, हुन्का धार्मिक होय केरऽ बड़ी घमंड छेल्हें । कोय विद्वान से या साधु संत से मिलै छेला ते एकेरा प्रश्न करै छेला, धर्म की छिकै ? काहे कि हुन्हीं धार्मिक छेला । प्रश्न केरऽ भूमिका भी बनाबै छेलान कि हम्में धार्मिक छिकां । सबसे धर्म केरऽ सही अर्थ जानै ले चाहै छी । हमरा आज तक केकरो उत्तर से संतोष नांय मिललऽ । एक दिन राजा केरऽ भेंट एक फकीर से होलऽ । राजां ने प्रश्न पुछलका धर्म की छिकै ? फकीर ने भी प्रश्न करलकै, कौन धर्म जेकरा से धार्मिकता आबै छै, वू धर्म की जेकरा से खुद के जानलऽ जाय सकै छै । वू धर्म कौन धर्म के लेलऽ पुछी रहलऽ छऽ ? राजा चौंकी गेला । पुछलता धर्म भी अलग अलग छै ? फकीर ने कहलकै सबाल अलग- अलगहुबे केर ऽ नांय छै । सवाल अपने केरऽ उपयुक्त होना चाहिवऽ भाषा केरऽ धर्म छै धारण करना, संत केरऽ धर्म छै खुद के जानना, संसारी केरऽ धर्म छै मनोवांछित के पुरा करना अपने कौन धर्म के जानै ले चाहै छऽ राजा ? अबे राजा भ्रम में पड़ी गेला । हुन्हीं फकीर से कहलका, तोहें हमरा उलझाबे नांय, सीधा बात करें । फकीर ने कहलकै सबके लेलऽ ओकरऽ धर्म वेह छिकै, जेकरा वू जानी सकै धार्मिक होय से अपने सत्य नांय पाय सकै छऽ । होंऽ अपनऽ धर्म में होवे से सत्य पाय सके छऽ । धर्म में होना आरऽ धार्मिक होना एकरा में फर्क होय छै । धर्म एक स्वाद आरो धार्मिक होना भोजन जेन्हऽ छै । धार्मिक एक कर्म काण्ड आरो धर्म एक अनुमति छै । राजा के अबे समझ एल्हेन कि खाली धार्मिक आचरण जानै से धर्म जीवन में नांय आबे सकै छै । धर्म के लेलऽ थोड़ऽ अकेला होय के अपने जानै ले पड़तै, तभिये धर्म केरऽ सही स्वरूप समझ में ऐते ।
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