भगवान जे हमरा देलऽ छथिन वेहे हमरऽ छिके | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
ताहें चाहऽ या नांय चाहऽ, जिन्दगी में कुछ न कुछ बात होते रहे छै । खास तौर पर वू घटना जे प्रतिकूल छै या हमरऽ चाहे अनुसार नांय छै । इ समय में की करियै ? जबे जीवन में अनचाहा होय लागे ते तीन हालात बनते । या ते तोहें ओकरा से निपटै के लेलऽ उत्साह में आय जागऽय निराशा में डुबी जागऽ । ई दोनों से भी खतरनाक एक स्थिति हाय जे ईर्ष्या में डुबी जाना । ध्यान रखिहऽ, ईर्ष्या की करी जाय छै । हमरा साथ कुछ गलत होय गेलऽते ईर्ष्या कहे छै, तोहें भी दोसरा के साथ गलत करऽ दोस्ती में कष्ट मिली गेलऽ होय ते कहे छै दोस्ती करना भी बन्द करी दे । जो केकरो से ठगाय गेलऽ ते ईर्ष्या कहे छै तोहें भी छल- कपट करो । अच्छा लोगऽ के साथ भी खराब बात होते रहे छै । लेकिन जबे अच्छा आदमी के साथ गलत होय छै, ते वू आरो अच्छा बनी जाय छै । लेकिन ईर्ष्या ओकरा कहे छै अच्छा बनी के की करबे ? तोरा साथ खराब होलऽ छऽ ते तोहें भी खराब बनी जो । ईर्ष्या एक एन्हऽ दुर्गुण छै जे हमरऽ भीतर मंद गति से जहर के रूपऽ उतरै छै । जेकरा ईर्ष्या मोटाबे ले होवे ओकरा एक मंत्र जीवन में उतारी लेना चाहीवऽ । एकदम सीधा सन बात छै, भगवान जे हमरा, हमरऽ हिस्सा में देलऽ छय, फेरू काहे दोसरा केरऽ हिस्सा पर नजर लगैए ? योग में एकरा अपरिग्रह कहलऽ गेलऽ छै । अपरि ग्रह केरऽ मतलब छै जे मिली गेलऽ ओकरे में संतोष करऽ बस ईर्ष्या यही से गलना शुरू होय जाते । आरेा वू ईर्ष्या ने तोरऽ जे अच्छाई के रोकी राखलऽ छै, वू अपने आप ऊपर आय जाते ।
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